World Book Fair 2020 blank paper more valuable if the readers do not reach it the printed book is junk – World Book Fair 2020: ‘कोरा कागज ज्यादा कीमती, पाठकों तक न पहुंचे तो छपी किताब रद्दी’

World Book Fair 2020: नई दिल्ली में चल रहा विश्व पुस्तक मेला अपने चरम पर पहुंच चुका है। पाठकों से मुखातिब, किताबों के लोकार्पण और लेखक-पाठकों से संवाद करवाने में व्यस्त युवा प्रकाशक अपनी अलग छाप छोड़ रहे हैं। किताब और पाठकों के साथ इनके बीच की अहम कड़ी लेखक हैं जिनके साथ इनकी व्यस्तता भी चरम पर है। किताबों के प्रकाशन को आमतौर पर बहुत चुनौती भरा माना जाता रहा है। अब युवा चेहरे नई तकनीक और तेवर के साथ इस क्षेत्र में जूझ रहे हैं। वाणी प्रकाशन समूह की अदिति माहेश्वरी गोयल का कहना है कि अगर वित्तीय नजरिए से बोलूं तो प्रकाशन का कारोबार फायदे का कारोबार नहीं रह गया है। एक जुनून ही है जो आपको आगे बढ़ाता है।

अदिति माहेश्वरी कहती हैं कि कागज वाले, बाइंडर, प्रिंटर सब अग्रिम भुगतान चाहते हैं। लेकिन किताब विक्रेता तो हमें एक साल बाद भी भुगतान नहीं करते हैं। उनकी अपनी समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन हमें लेखकों को रॉयल्टी देनी होती है, ढांचा चलाना होता है जिसके लिए पैसे कहां से आएं? उन्होंने कहा कि प्रकाशकों के लिहाज से फाइनेंशियल इको सिस्टम ही नहीं बन पाता है। दुखद हालात यह है कि कोरे कागज की कीमत ज्यादा होती है और पाठकों व कद्रदानों तक नहीं पहुंच सके तो छपी हुई किताब रद्दी होती है। हम बैंकों से कर्ज नहीं ले सकते क्योंकि हमारे देश में अभी तक बौद्धिक संपदा का मौद्रीकरण नहीं हो पाया है। अदिति कहती हैं कि हमारे यहां बौद्धिक संपदा को नापने का कोई पैमाना ही तैयार नहीं है तो फिर वह बाजार के मानदंडों पर कैसे टिकेगा। इस बार के मेले को लेकर अदिति माहेश्वरी ने कहा कि सबसे अच्छी बात यह है कि मेले में पाठक बहुत आ रहे हैं। किताबें जोर-शोर से पढ़ी जा रही हैं। यह धारणा बिल्कुल गलत बनाई जा रही है कि लोग पढ़ना नहीं चाह रहे। लोग खूब किताबें पढ़ रहे हैं।

‘नए खिलाड़ी के रूप में चुनौती से खुश हूं’

यश पब्लिकेशंस के राहुल भारद्वाज का कहना है कि हिंदी प्रकाशन क्षेत्र में नए खिलाड़ी के रूप में मैं इस चुनौती से खुश हूं। चुनौती तो हर करोबार में है और बिना उससे जूझे कहीं भी सफलता नहीं मिलती है। हमने बहुत कम समय में हिंदी प्रकाशन में बहुत कुछ कर लिया। लोग हिंदी की किताबें पढ़ना चाहते हैं। यश पब्लिकेशंस से प्रकाशित अपनी जीवनी के लोकार्पण पर प्रेम चोपड़ा आए तो उन्होंने कहा कि जीवनी के हिंदी अनुवाद की मांग ज्यादा है। हिंदी केवल भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय है। राहुल भारद्वाज ने कहा कि कामकाजी दिन भी में इतनी ठंड और बारिश के बीच बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। छुट्टी के दिन तो पांव रखने की जगह नहीं होती है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी उपन्यास और सिनेमा से जुड़े साहित्य को पसंद कर रही है। पाठकों की सबसे ज्यादा रुचि गजलों में है। हम मुनव्वर राणा और हरिओम जी की गजलें लेकर आए हैं जिसे पाठक खूब पसंद कर रहे हैं।

अमन प्रकाशन के निदेशक ऋषभ वाजपेयी भी हिंदी प्रकाशन में एक जुनूनी तेवर रखते हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक प्रकाशन मेरे पिताजी अरविंद वाजपेयी ने 1987 में शुरू किया था। अपने प्रबंधन की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं इससे जुड़ गया और अब तो पीछे मुड़ कर देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। ऋषभ कहते हैं कि किताबों से प्रेम ही आपको यहां स्थिर रख सकता है। सरकार की योजनाओं में शिक्षा के क्षेत्र में फंडिंग बहुत कम है तो उसका सीधा असर हम पर होता है। उन्होंने कहा कि अमन प्रकाशन के स्टॉल पर उद्भ्रांत की आत्मकथा ‘मैंने जो जिया’, राकेश शंकर भारती की ‘कोठा न. 64’, सुरेश कांत का व्यंग्य संग्रह ‘लेखक की दाढ़ी में चमचा’ और मृदुल कपिल की ‘कानपुर की घातक कथाएं’ पाठकों द्वारा बहुत पसंद की जा रही हैं।

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